Thursday, August 18, 2016

ओ मेरी माँ

                      ओ मेरी मां
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एक बेटी ने अपनी मां से पूछा,
मां तूने क्यों मुझको कोख मे मारा,
आज अगर मै जिन्दा होती...
शायद तेरा सहारा बनती ,
तुझसे लिपट कर तेरे साथ मै रोती ,
तेरे दुख को अपना दुख मै कहती ,
मगर मां ...
तूने तो बेटे की कामना की थी,
मेरी नही ...
उसी बेटे ने तुम्हारी लाठी को तोड़ दिया ,
तुझे तड़पता हुआ यूं ही छोड़ दिया ,
मै तो तेरे लिये पराई थी न,
तुझे तो कुल का दीपक चाहिये था न,
बस इसीलिये तो तूने मुझे मार डाला,
मेरी उम्मीदों का भी तो गला घोंट डाला,
हां मां सच तो यही है न....
फ़िर तू इतनी परेशान क्यों है ?
अपने बेटे पे इतना हैरान क्यों है ?
क्या हुआ , जो उसने तुझे ठुकरा डाला है ,
तूने भी तो कोख मे मेरा गला घोंट डाला है ,
बता मां …तेरा दर्द बांटू भी तो कैसे ?
मै तो खुद एक सवाल हूं, तेरे लिये जैसे ,
मां... तुम मुझे इतना भर बताना ,
मेरी नानी का तुझे जन्म देने का किस्सा सुनाना,
फिर खुद से पूछना ,
और खुद को बताना ,
अगर मेरी नानी भी तेरे जैसा करती ,
तो क्या तू इस खूबसूरत दुनिया मे होती.…
                    अल्का श्रीवास्तव

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