अंकिता सुबह का सारा काम निपटाकर बस टीवी खोलकर बैठी ही थी कि डोर बेल बजने लगी। उसने गेट खोला तो सामने उसकी सहेली श्वेता खड़ी थी। दोनों सहेलियाँ आपस में गले मिलीं। अंकिता श्वेता को बेडरूम में ले आई। श्वेता ने अंकिता से पूछा,
"कैसी हो अंकिता?"
"मैं अच्छी हूँ। बढ़िया जिन्दगी चल रही है। तुम बताओ तुम्हारी घर गृहस्थी कैसी चल रही है? तुम्हारे पति कैसे हैं? और ससुराल में सब लोग कैसे हैं? बच्चे कितने हैं?" अंकिता एक साँस मे सब कुछ पूछती चली गयी।
"मेरी तीन साल की एक बेटी है और एक साल का बेटा है। सास ससुर गाँव में रहते हैं। विजय बहुत अच्छे हैं मुझसे बहुत प्यार करते हैं। कभी कभी आपस में हमारी नोंक झोंक हो जाती है। लेकिन एक दो दिन में सब सामान्य हो जाता है।" श्वेता ने बड़े गर्व से बताया।
"तो क्या दो दिन तक तुम लोग एक दूसरे से बात नहीं करते? और वैसे भी ये नोंक झोंक होती ही क्यों है?" अंकिता को बहुत आश्चर्य हुआ।
"अरे यार ये तो पार्ट ऑफ लाइफ है। जहाँ आपस में नोंक झोंक होती है वहीं प्यार होता है इसके बिना तो जिन्दगी मे कोई रस ही नहीं है। एक दूसरे से लड़ना झगड़ना और एक दूसरे से रूठना मनाना यही तो जिन्दगी है। क्या तुम्हारे पति से तुम्हारी कभी लड़ाई नहीं हुई?" श्वेता ने आश्चर्य से पूछा।
"नहीं..हमारी शादी को तीन साल हो गये, लेकिन हमारे बीच कोई झगड़ा तो क्या कभी छोटी मोटी नोंक झोंक भी नहीं हुई। राज मुझसे बहुत प्यार करते हैं।" अंकिता की आवाज में गर्व था।
"अरे ऐसा हो ही नहीं सकता..जहाँ नोंक झोंक न हो वहाँ प्यार कहाँ होगा। मुझे लगता है तुम्हारे पति तुमसे प्यार ही नहीं करते बस दिखावा है वो सब।" श्वेता ने शंकित आवाज में कहा।
"नहीं ऐसा नहीं है। सच में राज मुझसे बहुत प्यार करते हैं।"
"अच्छा बताओ तुम्हारे पति तुम्हें कितनी बार बाहर घुमाने ले गये हैं? कितनी बार तुम्हें बिना किसी कारण के गिफ्ट दिये हैं। अच्छा ये छोड़ो ये बताओ हनीमून के लिए तुमको कौन सी रोमांटिक जगह ले गये थे?" श्वेता ने अंकिता की आँखों में आंखें डालते हुए पूछा।
"हनीमून पर तो हम कहीं गए ही नहीं। हमारी शादी के बाद माँ की तबियत खराब हो गयी थी और दो हफ्ते के लिए मैं मायके चली गयी। उसके बाद राज एक महीने की ट्रेनिंग पर हैदराबाद चले गये। फिर कुछ न कुछ लाइफ में ऐसा चलता रहा कि हम कहीं जा ही नहीं पाए।" अंकिता ने सफाई दे तो दी लेकिन मन के किसी कोने में एक सवाल ठहर गया। हल्की सी उदासी की एक रेखा उसके चेहरे पर आ गयी लेकिन बड़ी सफाई से अंकिता ने उसे छिपा लिया।
"ये सब तो बहाने हैं। अगर तुम्हारे पति तुमसे प्यार करते तो कभी न कभी तुम्हें हनीमून पर ले जाते। लगता है वो किसी और से ही प्यार करते हैं। श्वेता ने जोर से एक ठहाका लगाया।
अंकिता चौंक गयी। वो मन ही मन बुदबुदाई "नहीं ऐसा नहीं हो सकता।"
तभी श्वेता ने इधर उधर देखते हुए पूछा, "तुम्हारे बच्चे नहीं दिख रहे? कहीं गये हैं क्या?"
"अरे नहीं अभी हमारे कोई बेबी नहीं है।"
इस बार चौंकने की बारी श्वेता की थी। वो आश्चर्य से बोली,
"क्या?? अब तक तुम्हारे कोई बेबी नहीं है। तीन साल हो गये शादी को। कोई उपाय कर रखा है बच्चा न होने के लिए या फिर तुम दोनों में कोई कमी है? या कोई और कारण है?" श्वेता को बहुत आश्चर्य हो रहा था।
"ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा तुम सोच रही हो। बस अभी कुछ समय हमें बच्चा नहीं चाहिए।"
"कभी तुम्हारे पति ने तुमसे बच्चे की मांग नहीं की।" श्वेता का आश्चर्य अपने चरम पर था।
"नहीं राज ने मुझसे कभी नहीं कहा कि उन्हें बच्चा चाहिए।" अंकिता ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
अब तक श्वेता के सारे सवाल अंकिता के मन मस्तिष्क पर छाने लगे थे। उसने शादी के बाद के तीन साल पर अपनी नजरें दौड़ाईं और धीरे से बोली, " राज ने कभी मुझसे बच्चे की डिमांड नहीं की। डिमांड तो छोड़ो कभी ऐसा कुछ न कहा न मेरे साथ ऐसा कुछ किया जिससे लगे कि राज को बेबी चाहिए।"
"तब तो पक्का किसी दूसरी औरत का चक्कर है। वरना ऐसा नहीं है कि शादी के तीन साल में तुम्हारे पति तुमसे बच्चे की चाहत न रखते हों।" श्वेता ने पूरे विश्वास के साथ कहा।
अनजाने में ही सही एक शक का बीज अंकिता के मन में श्वेता बो रही थी। अंकिता की सोचने की मुद्रा में सिकुड़ी आंखे बता रहीं थी कि उसके मन में राज को लेकर एक शक का बीज पनप रहा है। जब किसी के मन में किसी व्यक्ति को लेकर शक पैदा हो जाए तो उस व्यक्ति की केवल नकारात्मक बातें ही दिखने लगती हैं। अंकिता भी श्वेता की बातों को सच मानने के लिए राज में बुराइयां ढूँढने लगी थी। अब उसे वो सब दिख रहा था जिसपर उसने कभी ध्यान नहीं दिया था। राज का देर से घर आना और कारण पूछने पर टाल जाना। कहीं घूमने की बातें करने पर काम का बहाना बना देना। रात को उसके सो जाने के बाद लेपटाॅप खोलकर बैठ जाना...अभी तक कभी अंकिता ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था लेकिन श्वेता की बातें सुनने के बाद उसे सबकुछ ध्यान आ रहा था। उसके मन ने ये मानना शुरू कर दिया था कि राज उससे कभी कोई झगड़ा नहीं किया था तो इसका मतलब सच में वो उससे प्यार नहीं करता था या उससे कोई मतलब नहीं रखना चाहता था। बेवकूफी भरी बिना सिर पैर की बातें उसके दिमाग में आने लगीं थी। तभी श्वेता ने जाने की इजाजत माँगी। अंकिता उसे गेट तक छोड़ने आई लेकिन उसके चेहरे पर उदासी की एक चादर फैली साफ दिख रही थी। कुछ देर बाद अंकिता की भाभी का फोन आया। अपनी भाभी से अंकिता ने बड़े ही अनमने ढंग से बात की।
शाम को राज घर आये। जहाँ रोज अंकिता हंसते मुसकुराते उसका स्वागत करती थी आज उसने राज को एक ग्लास पानी भी नहीं पूछा और कमरे में अपनी किताब खोलकर बैठ गयी। राज को आश्चर्य तो हुआ लेकिन वो कुछ बोला नहीं। कपड़े बदलकर उसने किचन से खुद जाकर पानी लिया और कमरे में आ गया। अंकिता किताब में देख तो रही थी लेकिन उसकी आंखों में किसी भी शब्द का प्रतिबिंब नहीं था बल्कि उदासी की एक परत राज को साफ दिखाई दे रही थी।
"क्या बात है अंकिता कुछ उदास लग रही हो।" राज ने बड़े प्यार और अपनेपन से पूछा।
"कुछ नहीं राज मैं ठीक हूँ।" अंकिता ने किताब में ही नजरें गड़ाए हुए जवाब दिया।
राज ने उसके हाथों से किताब ले ली और उसका चेहरा ऊपर उठाकर पूछा, "सच सच बताओ क्या बात है?"
अब तक अंकिता के सब्र का बांध टूट चुका था। पहली बार ऐसा हुआ था जब अंकिता ने राज से इतनी देर तक कोई बात नहीं की थी। उसने राज की आँखों में आंखें डालते हुए पूछा
"बताइए राज क्या आप सच में मुझसे प्यार करते हैं?"
"हाँ करता हूँ लेकिन तुम ये क्यों पूछ रही हो?" राज की आंखे आश्चर्य से सिकुड़ गयीं।
"आज तक आपने मुझसे न तो कभी कोई झगड़ा किया जबकि लोग कहते हैं जहाँ झगड़ा न हो वहाँ प्यार नहीं होता। और हाँ आप मुझे कभी घुमाने नहीं ले गये। न मूवी न माॅल...ये छोड़िए ये बताइए आपने अब तक मुझसे कभी बच्चे की डिमांड क्योंं नहीं की? क्या आपको बच्चे नहीं पसन्द हैं?" एक सांस में अंकिता ने श्वेता के सभी सवाल दोहरा दिए।
राज को हंसी तो आई लेकिन उसने अपनी हंसी रोकते हुए एक पल को कुछ सोचा और अंकिता का फोन उठाकर काॅल लाॅग पर एक सरसरी नजर डाली और अपनी आवाज में गंभीरता लाते हुए बोला,
"लगता है आज तुम्हारी भाभी ने तुम्हारा ब्रेन वाश किया है। तुम अपने मायके वालों से कह दो कि वो हमारी घर गृहस्थी से दूर रहें। खुद तो तुम्हारे भैया से उनकी बनती नहीं है और वो तुम्हारे मन में मेरे खिलाफ जहर भर रही हैं।"
अंकिता एकाएक सकपका गयी। उसकी आंखों में आंसू झिलमिलाने लगे। वो कुछ बोलती उससे पहले ही राज बोल पड़ा,
"और हाँ! एक बात अच्छी तरह समझ लो। अगर तुम्हें लगता है कि हमारे बीच झगड़ा नहीं होता उसका कारण हमारे बीच प्यार का न होना है तो आज ही ये रिश्ता खत्म समझो। माफ करना मैं रोज रोज किच किच नहीं चाहता। तुम्हें बेशक शौक होगा झगड़ा करने का लेकिन मैं सुकून से जीना चाहता हूँ। और हाँ मुझे अगर बच्चा चाहिए होगा तो कमी नहीं है लड़कियाँ की। मैं दूसरी शादी कर लूँगा। फिर तुम रहना सड़ी मानसिकता वाले लोगों के साथ अपने मायके में।"
इतना सुनना था कि अंकिता के आँसुओं का बाँध टूट गया। वो फूट फूट कर रोने लगी। उसे कुछ नही समझ आ रहा था। वो बस रोए जा रही थी। तभी राज ने उसका चेहरा ऊपर उठाया और उसके आँसू पोछते हुए बोला,
"बस पगली! मैं इसीलिए तुमसे कभी कोई झगड़ा नहीं करता। मुझे पता है तुम जरा सी बात पर रोने लगती हो। और मैं तुम्हारे ये आँसू कभी नहीं देख सकता। वैसे तुम्हारे अंदर कोई कमी नहीं है। तुम बहुत ही अच्छी हो लेकिन कभी कभार छोटी मोटी गलती तुमसे हो जाती है, जिसे मैं नजरअंदाज कर देता हूँ। वैसे तुमसे ये किसने कह दिया कि जहाँ झगड़ा या नोंक झोंक नहीं होती वहाँ प्यार नहीं होता। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ। और वैसे भी प्यार किसी कंडीशन से बंधा नहीं होता। प्यार तो अपनेआप में पूर्ण है खुद में समर्थ है उसे किसी सहारे की जरूरत नहीं है। रही बात घुमाने की, माॅल और मूवी ले जाने की, तो उसके लिए मुझे थोड़ा वक्त दो। बुरी तरह काम में उलझा हूँ। जैसे ही काम की उलझनों से बाहर आऊँगा तुम्हें किसी हिल स्टेशन पर ले जाऊंगा।"
"अब आती है बात बच्चे की, तो किसे बच्चों की चाहत नहीं होती। लेकिन जब तक तुम्हारा एम बी ए कम्पलीट नहीं हो जाता हमें बच्चे की इच्छा को मन में दबाना होगा। मैं चाहता हूँ कि तुम अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ। एक बार तुम्हारा भविष्य सुरक्षित हो जाए तब बच्चे के बारे में सोचेंगे। अभी मैं तुम्हारी पढ़ाई में कोई व्यवधान नहीं चाहता। तुम्हें पढ़ने का शौक है तो पहले अपने इस शौक को पूरा करो। बाकी सब बाद में।"
अंकिता ने कसकर राज को बाँहों में जकड़ लिया। वो उसके सीने से लगती हुई बस इतना बोली,
"राज मुझे माफ कर दीजिए।"
राज ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराया और धीरे से मुस्कुरा उठा..
अल्का श्रीवास्तव