Wednesday, August 24, 2016

कहानी ...नोंक झोंक

अंकिता सुबह का सारा काम निपटाकर बस टीवी खोलकर बैठी ही थी कि डोर बेल बजने लगी। उसने गेट खोला तो सामने उसकी सहेली श्वेता खड़ी थी। दोनों सहेलियाँ आपस में गले मिलीं। अंकिता श्वेता को बेडरूम में ले आई। श्वेता ने अंकिता से पूछा,

"कैसी हो अंकिता?"

"मैं अच्छी हूँ। बढ़िया जिन्दगी चल रही है। तुम बताओ तुम्हारी घर गृहस्थी कैसी चल रही है? तुम्हारे पति कैसे हैं? और ससुराल में सब लोग कैसे हैं? बच्चे कितने हैं?" अंकिता एक साँस मे सब कुछ पूछती चली गयी।

"मेरी तीन साल की एक बेटी है और एक साल का बेटा है। सास ससुर गाँव में रहते हैं। विजय बहुत अच्छे हैं मुझसे बहुत प्यार करते हैं। कभी कभी आपस में हमारी नोंक झोंक हो जाती है। लेकिन एक दो दिन में सब सामान्य हो जाता है।" श्वेता ने बड़े गर्व से बताया।

"तो क्या दो दिन तक तुम लोग एक दूसरे से बात नहीं करते? और वैसे भी ये नोंक झोंक होती ही क्यों है?" अंकिता को बहुत आश्चर्य हुआ।

"अरे यार ये तो पार्ट ऑफ लाइफ है। जहाँ आपस में नोंक झोंक होती है वहीं प्यार होता है इसके बिना तो जिन्दगी मे कोई रस ही नहीं है। एक दूसरे से लड़ना झगड़ना और एक दूसरे से रूठना मनाना यही तो जिन्दगी है। क्या तुम्हारे पति से तुम्हारी कभी लड़ाई नहीं हुई?" श्वेता ने आश्चर्य से पूछा।

"नहीं..हमारी शादी को तीन साल हो गये, लेकिन हमारे बीच कोई झगड़ा तो क्या कभी छोटी मोटी नोंक झोंक भी नहीं हुई। राज मुझसे बहुत प्यार करते हैं।" अंकिता की आवाज में गर्व था।

"अरे ऐसा हो ही नहीं सकता..जहाँ नोंक झोंक न हो वहाँ प्यार कहाँ होगा। मुझे लगता है तुम्हारे पति तुमसे प्यार ही नहीं करते बस दिखावा है वो सब।" श्वेता ने शंकित आवाज में कहा।

"नहीं ऐसा नहीं है। सच में राज मुझसे बहुत प्यार करते हैं।"

"अच्छा बताओ तुम्हारे पति तुम्हें कितनी बार बाहर घुमाने ले गये हैं? कितनी बार तुम्हें बिना किसी कारण के गिफ्ट दिये हैं। अच्छा ये छोड़ो ये बताओ हनीमून के लिए तुमको कौन सी रोमांटिक जगह ले गये थे?" श्वेता ने अंकिता की आँखों में आंखें डालते हुए पूछा।

"हनीमून पर तो हम कहीं गए ही नहीं। हमारी शादी के बाद माँ की तबियत खराब हो गयी थी और दो हफ्ते के लिए मैं मायके चली गयी। उसके बाद राज एक महीने की ट्रेनिंग पर हैदराबाद चले गये। फिर कुछ न कुछ लाइफ में ऐसा चलता रहा कि हम कहीं जा ही नहीं पाए।" अंकिता ने सफाई दे तो दी लेकिन मन के किसी कोने में एक सवाल ठहर गया। हल्की सी उदासी की एक रेखा उसके चेहरे पर आ गयी लेकिन बड़ी सफाई से अंकिता ने उसे छिपा लिया।

"ये सब तो बहाने हैं। अगर तुम्हारे पति तुमसे प्यार करते तो कभी न कभी तुम्हें हनीमून पर ले जाते। लगता है वो किसी और से ही प्यार करते हैं। श्वेता ने जोर से एक ठहाका लगाया।

अंकिता चौंक गयी। वो मन ही मन बुदबुदाई "नहीं ऐसा नहीं हो सकता।"

तभी श्वेता ने इधर उधर देखते हुए पूछा, "तुम्हारे बच्चे नहीं दिख रहे? कहीं गये हैं क्या?"

"अरे नहीं अभी हमारे कोई बेबी नहीं है।"

इस बार चौंकने की बारी श्वेता की थी। वो आश्चर्य से बोली,

"क्या?? अब तक तुम्हारे कोई बेबी नहीं है। तीन साल हो गये शादी को। कोई उपाय कर रखा है बच्चा न होने के लिए या फिर तुम दोनों में कोई कमी है? या कोई और कारण है?" श्वेता को बहुत आश्चर्य हो रहा था।

"ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा तुम सोच रही हो। बस अभी कुछ समय हमें बच्चा नहीं चाहिए।"

"कभी तुम्हारे पति ने तुमसे बच्चे की मांग नहीं की।" श्वेता का आश्चर्य अपने चरम पर था।

"नहीं राज ने मुझसे कभी नहीं कहा कि उन्हें बच्चा चाहिए।" अंकिता ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।

अब तक श्वेता के सारे सवाल अंकिता के मन मस्तिष्क पर छाने लगे थे। उसने शादी के बाद के तीन साल पर अपनी नजरें दौड़ाईं और धीरे से बोली, " राज ने कभी मुझसे बच्चे की डिमांड नहीं की। डिमांड तो छोड़ो कभी ऐसा कुछ न कहा न मेरे साथ ऐसा कुछ किया जिससे लगे कि राज को बेबी चाहिए।"

"तब तो पक्का किसी दूसरी औरत का चक्कर है। वरना ऐसा नहीं है कि शादी के तीन साल में तुम्हारे पति तुमसे बच्चे की चाहत न रखते हों।" श्वेता ने पूरे विश्वास के साथ कहा।

अनजाने में ही सही एक शक का बीज अंकिता के मन में श्वेता बो रही थी। अंकिता की सोचने की मुद्रा में सिकुड़ी आंखे बता रहीं थी कि उसके मन में राज को लेकर एक शक का बीज पनप रहा है। जब किसी के मन में किसी व्यक्ति को लेकर शक पैदा हो जाए तो उस व्यक्ति की केवल नकारात्मक बातें ही दिखने लगती हैं। अंकिता भी श्वेता की बातों को सच मानने के लिए राज में बुराइयां ढूँढने लगी थी। अब उसे वो सब दिख रहा था जिसपर उसने कभी ध्यान नहीं दिया था। राज का देर से घर आना और कारण पूछने पर टाल जाना। कहीं घूमने की बातें करने पर काम का बहाना बना देना। रात को उसके सो जाने के बाद लेपटाॅप खोलकर बैठ जाना...अभी तक कभी अंकिता ने इस ओर  ध्यान नहीं दिया था लेकिन श्वेता की बातें सुनने के बाद उसे सबकुछ ध्यान आ रहा था। उसके मन ने ये मानना शुरू कर दिया था कि राज उससे  कभी कोई झगड़ा नहीं किया था तो इसका मतलब सच में वो उससे प्यार नहीं करता था या उससे कोई मतलब नहीं रखना चाहता था। बेवकूफी भरी बिना सिर पैर की बातें उसके दिमाग में आने लगीं थी। तभी श्वेता ने जाने की इजाजत माँगी। अंकिता उसे गेट तक छोड़ने आई लेकिन उसके चेहरे पर उदासी की एक चादर फैली साफ दिख रही थी। कुछ देर बाद अंकिता की भाभी का फोन आया। अपनी भाभी से अंकिता ने बड़े ही अनमने ढंग से बात की।

शाम को राज घर आये। जहाँ रोज अंकिता हंसते मुसकुराते उसका स्वागत करती थी आज उसने राज को एक ग्लास पानी भी नहीं पूछा और कमरे में अपनी किताब खोलकर बैठ गयी। राज को आश्चर्य तो हुआ लेकिन वो कुछ बोला नहीं। कपड़े बदलकर उसने किचन से खुद जाकर पानी लिया और कमरे में आ गया। अंकिता किताब में देख तो रही थी लेकिन उसकी आंखों में किसी भी शब्द का प्रतिबिंब नहीं था बल्कि उदासी की एक परत राज को साफ दिखाई दे रही थी।

"क्या बात है अंकिता कुछ उदास लग रही हो।" राज ने बड़े प्यार और अपनेपन से पूछा।

"कुछ नहीं राज मैं ठीक हूँ।" अंकिता ने किताब में ही नजरें गड़ाए हुए जवाब दिया।

राज ने उसके हाथों से किताब ले ली और उसका चेहरा ऊपर उठाकर पूछा, "सच सच बताओ क्या बात है?"

अब तक अंकिता के सब्र का बांध टूट चुका था। पहली बार ऐसा हुआ था जब अंकिता ने राज से इतनी देर तक कोई बात नहीं की थी। उसने राज की आँखों में आंखें डालते हुए पूछा

"बताइए राज क्या आप सच में मुझसे प्यार करते हैं?"

"हाँ करता हूँ लेकिन तुम ये क्यों पूछ रही हो?" राज की आंखे आश्चर्य से सिकुड़ गयीं।

"आज तक आपने मुझसे न तो कभी कोई झगड़ा किया जबकि लोग कहते हैं जहाँ झगड़ा न हो वहाँ प्यार नहीं होता। और हाँ आप मुझे कभी घुमाने नहीं ले गये। न मूवी न माॅल...ये छोड़िए ये बताइए आपने अब तक मुझसे कभी बच्चे की डिमांड क्योंं  नहीं की? क्या आपको बच्चे नहीं पसन्द हैं?" एक सांस में अंकिता ने श्वेता के सभी सवाल दोहरा दिए।

राज को हंसी तो आई लेकिन उसने अपनी हंसी रोकते हुए एक पल को कुछ सोचा और अंकिता  का फोन उठाकर काॅल लाॅग पर एक सरसरी नजर डाली और अपनी आवाज में गंभीरता लाते हुए बोला,

"लगता है आज तुम्हारी भाभी ने तुम्हारा ब्रेन वाश किया है। तुम अपने मायके वालों से कह दो कि वो हमारी घर गृहस्थी से दूर रहें। खुद तो तुम्हारे भैया से उनकी बनती नहीं है और वो तुम्हारे मन में मेरे खिलाफ जहर भर रही हैं।"

अंकिता एकाएक सकपका गयी। उसकी आंखों में आंसू झिलमिलाने लगे। वो कुछ बोलती उससे पहले ही राज बोल पड़ा,

"और हाँ!  एक बात अच्छी तरह समझ लो। अगर तुम्हें लगता है कि हमारे बीच झगड़ा नहीं होता उसका कारण हमारे बीच प्यार का न होना है तो आज ही ये रिश्ता खत्म समझो। माफ करना मैं रोज रोज किच किच नहीं चाहता। तुम्हें बेशक शौक होगा झगड़ा करने का लेकिन मैं सुकून से जीना चाहता हूँ। और हाँ मुझे अगर बच्चा चाहिए होगा तो कमी नहीं है लड़कियाँ की। मैं दूसरी शादी कर लूँगा। फिर तुम रहना सड़ी मानसिकता वाले लोगों के साथ अपने मायके में।"

इतना सुनना था कि अंकिता के आँसुओं का बाँध टूट गया। वो फूट फूट कर रोने लगी। उसे कुछ नही समझ आ रहा था। वो बस रोए जा रही थी। तभी राज ने उसका चेहरा ऊपर उठाया और उसके आँसू पोछते हुए बोला,

"बस पगली! मैं इसीलिए तुमसे कभी कोई झगड़ा नहीं करता। मुझे पता है तुम जरा सी बात पर रोने लगती हो। और मैं तुम्हारे ये आँसू कभी नहीं देख सकता। वैसे तुम्हारे अंदर कोई कमी नहीं है। तुम बहुत ही अच्छी हो लेकिन कभी कभार छोटी मोटी गलती तुमसे हो जाती है, जिसे मैं नजरअंदाज कर देता हूँ। वैसे तुमसे ये किसने कह दिया कि जहाँ झगड़ा या नोंक झोंक नहीं होती वहाँ प्यार नहीं होता। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ। और वैसे भी प्यार किसी कंडीशन से बंधा नहीं होता। प्यार तो अपनेआप में पूर्ण है खुद में समर्थ है उसे किसी सहारे की जरूरत नहीं है। रही बात घुमाने की, माॅल और मूवी ले जाने की, तो उसके लिए मुझे थोड़ा वक्त दो। बुरी तरह काम में उलझा हूँ। जैसे ही काम की उलझनों से बाहर आऊँगा तुम्हें किसी हिल स्टेशन पर ले जाऊंगा।"

"अब आती है बात बच्चे की, तो किसे बच्चों की चाहत नहीं होती। लेकिन जब तक तुम्हारा एम बी ए कम्पलीट नहीं हो जाता हमें बच्चे की इच्छा को मन में दबाना होगा। मैं चाहता हूँ कि तुम अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ। एक बार तुम्हारा भविष्य सुरक्षित हो जाए तब बच्चे के बारे में सोचेंगे। अभी मैं तुम्हारी पढ़ाई में कोई व्यवधान नहीं चाहता। तुम्हें पढ़ने का शौक है तो पहले अपने इस शौक को पूरा करो। बाकी सब बाद में।"

अंकिता ने कसकर राज को बाँहों में जकड़ लिया। वो उसके सीने से लगती हुई बस इतना बोली,

"राज मुझे माफ कर दीजिए।"

राज ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराया और धीरे से मुस्कुरा उठा..

                 अल्का श्रीवास्तव

Monday, August 22, 2016

कहानी**** "आई लव बारिश "

"आई लव बारिश
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     मुझे बचपन से बारिश मे भीगने का बहुत शौक था। बारिश की बूंदें सिर्फ मेरे तन को ही नहीं मेरे मन को भी भिगो देती।मुझसे टकराती ठंडी हवा मुझ सी ही तो थीं, बारिश में भीगी हुई। लेकिन मेरा ये शौक कभी पूरा नही हो पाया। मैं जैसे ही बारिश मे उछलकूद शुरू करती ..एक गरजती हुई आवाज आती,
"सुरभि ! ये क्या पानी मे उछलकूद कर रही हो, जाओ जाकर किचन मे मां का हाथ बटाओ।"
मै बुरा सा मुंह बनाती और सिर दर्द का बहाना बना कर अपने कमरे मे आ जाती। दादी नही रही, तब ये उत्तरदायित्व बड़ी मां निभाती।..मै जैसे ही पानी मे भीगना शुरू करती ..बड़ी मां चिल्लाती ,
" सुरभि ! ये क्या लड़को की तरह पानी मे उछल रही हो, ससुराल मे भी यही हाल रहा तो देखना एक दिन सास से मार खाओगी।"
मैं ये सुनकर डर जाती, और जोर से अपनी आंखे बंद कर लेती। मेरे दिमाग ने  सास की एक तस्वीर बना ली थी...हाथ मे डंडा लिये मुझे मारने के लिये आती एक तेज तर्रार औरत …..
     धीरे धीरे दिन बीतने लगे।  मेरी शादी के लिये रिश्तें आने शुरू हो गये। एक दिन निखिल अपनी मां के साथ मुझे देखने आये। मैं कनखियों से निखिल की मां को देख रही थी। वो एक गंभीर महिला थीं और वो बहुत ही नपेतुले शब्दों मे बात कर रही थीं।  अभी तक मेरे मन से सास नाम का डर दूर नही हुआ था।
      अगले दिन बड़ी मां के पास निखिल की मां का फोन आया। वो मेरी और निखिल की शादी के लिये तैयार थी। मां बहुत खुश थीं। खुशी उनके चेहरे से टपक रही थी और मेरी  हालत उस बकरे जैसी थी ,जिसे हलाल करने के लिये कसाई के पास ले जाते हैं।
मैने शादी न करने के कई बहाने बनाये ,लेकिन मेरी किसी ने नही सुनी। मां ने मुझे समझाया, "बेटा ,निखिल से शादी करके तू बहुत खुश रहेगी ,देखना वहां तेरी हर इच्छायें पूरी होंगी।"
"क्या मै वहां बारिश मे भीग सकूंगी।" मैने बड़ी मासूमियत से पूछा। मां खिलखिला कर हंस पड़ीं।
      और मै एक दिन ब्याह कर निखिल के घर आ गयी। सास नाम से मुझे अभी भी डर लगता था। सभी रिश्तेदार जा चुके थे। सारी रस्मे बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से निभायी गयी थीं। निखिल के पिता की मृत्यु कई साल पहले हो चुकी थी। घर पर हम तीन लोग ही थे। एक अजीब सी खामोशी घर में थी । बस मेरे पैरों की पायल और हाथों की चूडियां, घर मे किसी के होने का एहसास कराती थी। एक उदासी निखिल और उनकी मां के चेहरे पर हर समय छायी रहती थी। मैनें निखिल से पूछा भी, लेकिन वो टाल गये।
      उस दिन मेरा मन बहुत उदास था। सुबह ही निखिल आफिस के काम से बाहर गये थे। उन्हें दूसरे दिन वापस आना था। सासू मां अपने कमरे मे थी , उन्होने खाना भी नही खाया था। शायद उनकी कुछ तबियत ढीली थी।
      दोपहर तक आसमान पर बादल छा गये। मेरा मन झूम उठा। थोड़ी देर मे जोरों की बारिश शुरू हो गयी। अब अपने आप को रोकना मुश्किल था। मेरा मन बारिश मे भीगने के लिये मचलने लगा। मैने सासू मां के कमरे में  झांक कर देखा, वो सो रही थी। मैं दबे पांव छत पर चल दी। उस दिन मैं बारिश में भीग जाना चाहती थी। बारिश की बूंदों में खुद भी बूंद  बन जाना चाहती थी। मैनें अपनी दोनो हथेली फैला दी और बारिश की बूंदो को अपनी मुठ्ठी  मे बंद करने लगी। आज मुझे रोकने वाला कोई नही था, न दादी ,न बड़ी मां और सासूमां सो रही थीं। अभी मुझे बारिश में भीगते हुए पांच मिनट भी नही हुए थे कि, बादल की गड़गड़ाहट और बारिश के शोर को मात करती हुई एक कड़क आवाज मेरे कानों मे पड़ी..
" सुरभि , ये क्या कर रही हो ,पानी मे भीगोगी तो बीमार हो जाओगी। जाओ नीचे जाकर कपड़े  बदलो।"
      मैनें एक बार फिर बुरा सा मुंह बनाया और कपडे बदल कर कमरे मे आ गयी। तब तक सासू मां चाय बना लायी। मैनें गुस्से में चाय पीने के लिये मना कर दिया। सासूमां चाय मेज पर रख कर चली गयीं। उस दिन एक बार फिर मेरी बारिश मे भीगने की इच्छा अधूरी रह गयी। मेरे सिर मे दर्द हो रहा था। मैनें दवा खाई और लेट गयी।थोड़ी देर में ही मुझे नींद आ गयी। मैनें सपने में एक लड़की को देखा,  छत पर हाथ फैलाये खड़ी एक लड़की, गोल गोल बूंद सी घूमती एक लड़की। और वो लड़की हूबहू मेरे जैसी थी।
शाम को अचानक मेरी आंख खुली। सासू मां निखिल को फोन पर वापस आने के लिये कह रही थी। मैं घबरा गयी। मैनें  पूछा,
"आप  निखिल को वापस क्यों बुला रही है"
"तुम्हें बुखार है।"
"अरे मांजी!  हल्का सा है ,दवा खाऊंगी तो ठीक हो जायेगा। आप बिना वजह निखिल को मत परेशान कीजिये।"
सासू मां कुछ नही बोली। रात तक निखिल आ गये। सुबह भी मेरा बुखार नही उतरा था। निखिल मुझे डॉक्टर के पास ले गये। वहां डॉक्टर ने मेरे कुछ टेस्ट कराये और शाम तक बता दिया कि मुझे निमोनिया हुआ है। घर पर और भी उदासी का माहौल हो गया।
    अगले दिन मेरी आंख देर से खुली। निखिल ने चाय बनायी। मैनें सासू मां के बारे मे पूछा, तो निखिल ने बताया कि घर में पंडित जी आये है और मां पूजा करा रही हैं। मैनें आश्चर्य से कहा..
" यहाँ मेरी तबियत खराब है और मांजी को पूजा की पड़ी है।"
"चुप रहो, मांजी तुम्हारे लिये पूजा करा रही हैं।" निखिल ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।
"मेरे लिये? मुझे क्या हुआ है? बस निमोनिया ही तो है।"
"आज निमोनिया हुआ है ,कल डबल निमोनिया होगा और फ़िर ....ये कह कर निखिल की आंख में आंसू आ गये।
" निखिल, फिर क्या?..आप मुझसे कुछ छिपा रहे हैं।"
" सुरभि! हमने तुम्हें कभी नही बताया कि मेरी एक छोटी बहन थी ..श्रुति। पिताजी के जाने के बाद वो ही हमारे मुस्कुराने की वजह थी। हमारी जिन्दगी थी। हम उसके लिये ही जीते थे। लेकिन एक  दिन कालेज से आते समय वो बारिश मे खूब भीगी। उसको पहले निमोनिया हुआ, फ़िर डबल निमोनिया और फ़िर वो हमें  छोड़ कर भगवान के पास चली गयी। मां श्रुति को खो चुकी हैं, लेकिन अब सुरभि को नही खोना चाहती, इसलिये वो महामृतुंजय का जाप करा रही हैं ...सुबह से बिना कुछ खाये पिये, ताकि तुम ठीक हो जाओ।"
ये कहते कहते निखिल की आवाज भर्रा गयी। मैं एकटक निखिल को देख रही थी। मेरे दिमाग में निखिल के एक एक शब्द हथोड़े की तरह पड़ रहे थे। मुझे अचानक अपनी मां की बहुत याद आने लगी। मैं सोचने लगी कि क्या सास ऐसी भी होती हैं? एक माँ की तरह? ...मैं झटपट पूजा के कमरे की ओर भागी, और जा कर सासूमां से लिपट गयी। मेरे मुंह से बस इतना निकला ..."मां मुझे माफ़ कर दो………
                           अलका श्रीवास्तव

Thursday, August 18, 2016

ओ मेरी माँ

                      ओ मेरी मां
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एक बेटी ने अपनी मां से पूछा,
मां तूने क्यों मुझको कोख मे मारा,
आज अगर मै जिन्दा होती...
शायद तेरा सहारा बनती ,
तुझसे लिपट कर तेरे साथ मै रोती ,
तेरे दुख को अपना दुख मै कहती ,
मगर मां ...
तूने तो बेटे की कामना की थी,
मेरी नही ...
उसी बेटे ने तुम्हारी लाठी को तोड़ दिया ,
तुझे तड़पता हुआ यूं ही छोड़ दिया ,
मै तो तेरे लिये पराई थी न,
तुझे तो कुल का दीपक चाहिये था न,
बस इसीलिये तो तूने मुझे मार डाला,
मेरी उम्मीदों का भी तो गला घोंट डाला,
हां मां सच तो यही है न....
फ़िर तू इतनी परेशान क्यों है ?
अपने बेटे पे इतना हैरान क्यों है ?
क्या हुआ , जो उसने तुझे ठुकरा डाला है ,
तूने भी तो कोख मे मेरा गला घोंट डाला है ,
बता मां …तेरा दर्द बांटू भी तो कैसे ?
मै तो खुद एक सवाल हूं, तेरे लिये जैसे ,
मां... तुम मुझे इतना भर बताना ,
मेरी नानी का तुझे जन्म देने का किस्सा सुनाना,
फिर खुद से पूछना ,
और खुद को बताना ,
अगर मेरी नानी भी तेरे जैसा करती ,
तो क्या तू इस खूबसूरत दुनिया मे होती.…
                    अल्का श्रीवास्तव

Wednesday, August 10, 2016

मुहब्बत

"काश ये दुनिया, तेरी आँखों सी होती,
हर तरफ फिर, मुहब्बत ही मुहब्बत होती...

तेरी आँखों में पढ़ी है, मुहब्बत की बातें,
साथ गुजारे दिन, साथ बिताईं रातें,
काश! वो दिन, वो रातें तेरी निगाहों मे होती,
हर तरफ फिर, मुहब्बत ही मुहब्बत होती...

वो पल, वो लम्हा, जरा ठहर तो जाता,
थोड़ा ही सही, दिल को सुकून तो आता,
काश! उस सुकून में, तेरी चाहत की बारिश होती,
हर तरफ फिर, मुहब्बत ही मुहब्बत होती...

तेरी आँखों में, हम अपना अक्श देख पाते,
और इन आंखों में, मीठा सा ख्वाब सजाते,
उन ख्वाबों में ही, मेरी सारी दुनिया होती,
हर तरफ फिर, मुहब्बत ही मुहब्बत होती...
                     -अलका श्रीवास्तव

Monday, August 8, 2016

कविता " यूँ ही "

****** यूँ ही ******
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""यूँ ही, बस यूँ ही, तुम मुस्कुराते रहो,
हम तुम्हें देखकर जी लेंगे...
वादा करो यूँ हंसने का तुम,
तुम्हारे आंसू अपनी पलकों पर ले लेंगे..

प्यार न करोगे गर मुझसे तो,
तुम्हारी नफरत को माथे से लगा लेंगे..
जो साथ बिताए थे उन लम्हों को,
हम अपने सीने में ही छिपा लेंगे....

धीरे धीरे ये उम्र गुजर जाएगी भी तो क्या,
हम अपनी जिन्दगी को एक याद बना लेंगे
तुम्हारी याद जब जब मुझे तड़पाएगी,
हम उसे जीने का सहारा बना लेंगे..

तेरी यादों को दिल में छिपाकर अपने,
दिल ही  दिल में तुम्हें अपना बना लेंगे,
वादा करो यूँ हंसने का तुम,
तुम्हारे आंसू अपनी पलकों पर सजा लेंगे...
                          अल्का श्रीवास्तव